प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण सामान्य ज्ञान Bharat Par Videshi Aakraman Gk

By: Gautam Markam

On: April 28, 2021

प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण

प्राचीन भारत पर विदेशी आक्रमण | Prachin Bharat Par Videshi Aakrman | Videshi Aakrman in India

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6 छठी से चौथी शताब्दी ई.पू. के राजनीतिक जीवन की एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना (मगध के उत्थान के अतिरिक्त) है, भारत पर विदेशी आक्रमणों का प्रथम चरण। इस चरण में भारत पर दो- पारसी (ईरानी) और यूनानी (मकदूनियाई) आक्रमण हुए थे।

भारत में ईरानी आक्रमण GK

  • भारत पर सबसे पहला आक्रमण पारसियों/ईरानियों का हुआ। हखामनी वंश के शासकों ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण कर उसे अपने प्रभावक्षेत्र में लाने का प्रयास किया।
  • पारसियों द्वारा परिश्चमोत्तर भारत पर आक्रमण का मुख्य कारण इस क्षेत्र का सामरिक एवं आर्थिक महत्त्व था। इस क्षेत्र पर अधिकार कर भारत में प्रवेश करने के मार्ग पर नियन्त्रण कायम किया जा सकता था।
  • पश्चिमोत्तर भारत का इलाका आर्थिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण था। इस मार्ग पर नियन्त्रण रहने से मध्य एशियाई व्यापार पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता था।
  • ईरानी आक्रमण का उल्लेख तत्कालीन भारतीय साहित्य में तो नहीं मिलता, तथापि यूनानी और रोमन इतिहासकारों (हैरोडोट्स, जेनोफन, प्लिनी, स्ट्रैबो, एरियन) ने इस आक्रमण का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है।
  • ईरानी आक्रमण एवं विजय का अभिलेखीय साक्ष्य मध्य एशिया से प्राप्त बहिस्तान एवं नक्श-ए-रूस्तम अभिलेख से मिलता है।
  • भारत पर पहला ईरानी आक्रमण साइरस/कुरूप (558-530 ई.पू.) द्वारा किया गया। साइरस/कुरूष ईरान का शक्तिशाली शासक था। हखामनी वंश की स्थापना का श्रेय उसे ही दिया जाता है। हालाँकि उसे सफलता नहीं मिली और उसे लौटना पड़ा।
  • साइरस के बाद के शासकों में डेरियस या दारा प्रथम (522-486 ई.पू.) का भारत पर विजय अभियान सफल रहा। उसने 519-13 ई.पू. के बीच सिन्धु प्रदेश पर विजय प्राप्त की।  हमदान एवं नक्श-ए-रूस्तम अभिलेखों से डेरियस द्वारा सिन्धु प्रदेश पर विजय की पुष्टि होती है। इतिहासकार हेरोडोट्स भी इस विजय की पुष्टि करता है।
  • बहिस्तान-अभिलेख से डेरियस द्वारा गांधार प्रदेश पर भी विजय की पुष्टि होती है।
  • डेरियस प्रथम के उत्तराधिकारी क्षयार्ष या जरसिस (486-465 ई.पू.) ने भी भारतीय प्रांतों पर अपना प्रभाव बनाये रखा। उसकी सेना में भारतीय सैनिकों को बड़ी संख्या में नियुक्त किया गया। इस सेना ने यूनान के साथ हुए युद्ध (ईरान और यूनान) में भी भाग लिया।
  • यद्यपि क्षयार्ष के सैनिक अभियानों का विवरण नहीं मिलता, तथापि कहा जाता है कि इस राजा ने भारत में अनेक मंदिरों को तोड़ डाला, भारतीय देवताओं की पूजा बंद करवा दी तथा उसके बदले अहुरमज्दा (जो ईरान का प्रधान देवता था) और प्रकृति की पूजा (ऋतम्) करने का आदेश दिया।
  • क्षयार्प के पश्चात् भारत से ईरानियों का प्रभुत्व धीर-धीरे समाप्त होने लगा। तथापि चौथी शताब्दी ई.पू. तक भारत पर ईरान का प्रभाव बना रहा।
  • डेरियस तृतीय के समय तक (335-330 ई.पू.) भारतीय भू-भाग पर ईरानी प्रभाव बना रहा, परन्तु विश्व विजेता सिकंदर ने ईरान पर विजय प्राप्त कर ईरान की प्रभुता और उसके भारतीय साम्राज्य को नष्ट कर दिया।
  • ईरानी आक्रमण का राजनीतिक दृष्टि से प्रभाव स्थायी भले न हो तथापि सांस्कृतिक तौर पर ईरानी प्रभुत्व का भारत पर निश्चय ही प्रभाव पड़ा।
  • भारतीय संस्कृति भी ईरानी सम्बन्धों से लाभान्वित हुई। इसका सबसे स्पष्ट प्रभाव लिपि पर पड़ा। ईरानी शासन के दौरान प्रचलित आरामाइक-लिपि के आधार पर ही खरोष्ठी-लिपि का विकास हुआ, जो अरबी के समान दायें से बायें की तरफ लिखी जाती थी।
  • भारतीयों ने ईरानियों से ही पवित्र अग्नि जलाने की प्रथा अपनाई।

भारत पर यूनानी आक्रमण (मकदूनियाई)

  1. ईरानी आक्रमण के पश्चात् भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर पुनः विदेशी आक्रमण का खतरा मंडराने लगा। इस बार आक्रमणकारी यूनानी थे। इस आक्रमण का नेता मकदूनिया (यूनान) का शासक सिकंदर था।
  2. सिकंदर का जन्म 356 ई.पू. में हुआ था।
  3. सिकंदर का पिता फिलिप मकदूनिया का शासक था।
  4. फिलिप 359 ई.पू. में मकदूनिया का शासक बना। वह विश्व विजेता बनना चाहता था, परन्तु असमय हत्या (329 ई.पू.) होने के कारण उसका स्वप्न पूरा नहीं हुआ।
  5. सिकंदर अरस्तू का शिष्य था।
  6. फिलिप के बाद 336 ई.पू. में 20 वर्ष की आयु में सिकंदर मकदूनिया का राजा बना।
  7. सिकंदर ने भारत-विजय का अभियान 326 ई.पू. में प्रारम्भ किया।
  8. सिकंदर के सेनापति का नाम सेल्यूकस निकेटर था।
  9. सिकंदर को पंजाब के शासक पोरस के साथ युद्ध करना पड़ा, जिसे हाइडेस्पीज के युद्ध या झेलम (वितस्ता) के युद्ध के नाम से जाना जाता हैं।
  10. सिकंदर की सेना ने व्यास नदी को पार करने से इनकार कर दिया।
  11. सिकंदर स्थल-मार्ग द्वारा 325 ई.पू. में भारत से लौट गया।
  12. सिकंदर की मृत्यु 323 ई.पू. में सूसा (फारस) में 33 वर्ष की अवस्था में हो गयी।
  13. सिकंदर का जल-सेनापति था- नियार्कस।
  14. यूनानी आक्रमण का सर्वाधिक प्रभाव सांस्कृतिक क्षेत्र में महसूस किया गया था।

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Gautam Markam

मेरा नाम गौतम है मै कवर्धा से हु मेरा ALLGK कोचिंग क्लास है और मैं एग्जाम की तैयारी ऑनलाइन फ्री में करवाता हु, साथ सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी की जानकारी लोगो को देता हु अपने वेबसाइट और टेलीग्राम के माध्यम से

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