छत्तीसगढ़ में जनजाति क्षेत्र में पांचवी अनुसूची व्यवस्था लागू है। छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय शासन द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजातियों की संख्या 5 हैं। विशेष घोषित पिछड़ी जनजातियाँ अबूझमाड़िया, बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा एवं बिरहोर है। छत्तीसगढ़ में राज्य शासन द्वारा घोषित विशेष पिछड़ी जनजातियों की संख्या 2 हैं। छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा घोषित पिछड़ी जनजातियाँ भुजिया एवं पंडो है। छत्तीसगढ़ में घोषित अनुसूचित जनजाति समूह की संख्या 42 है। छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक आदिवासी गोंड़ प्रजाति के हैं। छ.ग. में सर्वाधिक जनजाति प्रतिशत वाला नारायणपुर जिला है। भारत में सर्वाधिक जनजाति जनसंख्या वाले राज्यों में छत्तीसगढ़ राज्य का स्थान चौथा है। छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सबसे कम प्रतिशत जनजाति निवास करती है। जनजातियों का पूजा स्थल जहाँ उनका देव स्थान होता है, सरना कहलाता है। छत्तीसगढ़ के जनजातियों में भतरा सामाजिक दृष्टि से उच्च स्थान रखते हैं। आर्थिक दृष्टि से छ.ग. में सबसे विकसित जनजाति हल्बा है। धन देकर वधू प्राप्त करने की प्रथा पारिंग धन कहलाती है। आदिवासी समाज की ठुकू’ प्रथा एक पति त्याग कर दूसरा पति रखना हैं। आदिवासियों के सबसे प्रमुख देव बूढ़ादेव माने जाते हैं। गुण्डाधूर आदिवासी नायक जनजाति समूह में चमत्कारिक पुरुष के रुप में जाना जाता है। कुछ जनजातियों में विधवा स्त्री से अल्पव्यय में ‘अर-उतो विवाह किया जाता है। जनजातियों का ‘धेरपा त्यौहार कषि विषय से संबंधित है। जनजातियों में प्रचलित स्थानांतरित कृषि को पेन्दा कृषि कहते हैं। छत्तीसगढ़ की दण्डामी माड़िया गौर नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। गोंड जनजाति द्रविण भाषा परिवार से हैं। लमसेना विवाह गोंड़ जनजाति में प्रचलित है। गोंड़ जनजाति में दूध लौटावा प्रथा प्रचलित है। गोंड़ जनजाति अपने को कोयतोर’ या ‘कोया’ के ही रुप में जानती है। बेरियर एल्विन की किताब ‘द मूरियास एंड देयर घोटुल’ है जिसे,आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लंदन ने 1947 में प्रकाशित की थी। मुरिया जनजाति का प्रसिद्ध गीत रेला गीत है। डब्ल्यू. व्ही. ग्रिर्यसन लिखित ‘द मुरिया गोंड ऑफ बस्तर’ किताब 1938 में प्रकाशित हुई थी। अबुझमाड़िया जनजाति नारायणपुर में पाई जाती है। माड़िया जनजाति अपने परंपरागत नृत्य के समय जंगली भैंसे के सिंग से बनी टोपी पहनते है। माड़िया जनजाति मृतक स्तंभ का प्रयोग करती हैं। जनजातियों की मुड़िया-माड़िया प्रजाति लकड़ी के खुदाई कार्य में प्रवीण हैं। सल्फी नामक पेय माड़िया जनजाति में अत्यधिक लोकप्रिय है। मुरिया जनजाति में घोटुल संस्कृति का प्रचलन है। मुरिया जनजाति का प्रसिद्ध लोकनाट्य माओपाटा है। ‘सिहारी झोपड़ी’ माड़िया जनजाति के स्त्री पुरुष का मिलन स्थान है। माड़िया जनजाति में बड्डे’ वैद्य हैं। हिल माड़िया द्वारा की जाने वाली स्थानांतरित कृषि को पेद्दा कहते है। हल्ला जनजाति का निवास क्षेत्र रायपुर,दुर्ग एवं बस्तर है। हल्बा जनजाति के लोग स्वयं को महादेव-पार्वती द्वारा उत्पन्न मानते है। हल्बा जनजाति के अधिकतर लोगो ने कबीर पंथ को अपना लिया है। हल्बा जनजाति में प्रचलित टोटम को “बरग’ कहा जाता है। हल्बा जनजाति छूआछूत’ पर विश्वास करने वाली है। ब्रिटिशकाल में बस्तर राज्य की सरकारी बोली हल्बी थी। भारिया जनजाति में बिंदरी, नवाखाई, जवांरा आदि पर्व होते है। छ.ग. राज्य के उरांव आदिवासी वर्ग के अधिकांश लोगो ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया हैं। भारिया जनजाति में मंगनी विवाह, राजी-बाजी विवाह प्रचलित है। भारिया जनजाति की मूल बोली भरनोटी या भरियाटी है। कोरवा जनजाति मुख्यतः रायगढ़, जशपुर, सरगुजा में निवास करती है। छत्तीसगढ़ के कोरवा जनजाति का नृत्य भयोत्पादक होता है। छत्तीसगढ़ की कोरवा जनजाति में हंडिया मदिरा’ लोकप्रिय है। कोरवा जनजाति में हठ विवाह को ठुकू विवाह’ कहते है। कोरवा जनजाति के लोगों की पंचायत मैयारी कहलाती है। दिहारी कोरवा पिछड़ी जनजातियों में शामिल नहीं है। चैत्र मास के पूर्णिमा में उरांव जनजाति द्वारा सरहुल नृत्य किया जाता है। ‘नगेशिया’ जनजाति छत्तीसगढ़ के रायगढ़-सरगुजा जिले में प्रमुखता से निवास करते हैं। नगेशिया जनजाति के लोग साहनी गुरु व गाहिरा गुरु से बहुत अधिक प्रभावित हुए। बस्तर की धुरवा जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य परब नृत्य है। छत्तीसगढ़ के अगरिया आदिवासी प्रजाति में उड़द दाल का विशेष महत्व है। कमार जनजाति मुख्यत: बिन्द्रानवागढ़, फिंगेश्वर, मैनपुर में निवास करती है। कमार जनजाति कौरवों को अपना पूर्वज तथा सैनिक सेवा को पैतृक व्यवसाय मानते है। छत्तीसगढ़ की बैगा जनजाति ‘साल वृक्ष’ को पूज्यनीय मानती है। बैगा जाति मुख्यतः बिलासपुर, राजनांदगांव एवं सरगुजा में निवास करती है। बैगा जनजाति में विवाह को पैतुल कहते है। बैगा जनजाति अत्याधिक गुदना प्रिय हैं। ‘रसनवा पर्व बैगा जनजाति मुख्य रुप से मानते है। बैगा जनजातियों में विवाह के अवसर पर बारात की अगवानी के समय आँगन में हाथी बनाकर जो नृत्य किया जाता है उसे परघौनी नृत्य कहते हैं। बिलमा गीत बैगा जनजाति का मिलन गीत है। खैरवार जनजाति की अनेक उपजातियों का नाम प्राणियों व पौधों के ऊपर रखा गया है। भुजिया जनजाति मुख्य रुप से गरियाबंद जिले तक सीमित है। छत्तीसगढ़ में भतरा जनजाति का निवास क्षेत्र बस्तर जिला हैं। छत्तीसगढ़ में बिंझवार जनजाति का निवास क्षेत्र बिलासपुर/बलौदाबाजार हैं। बिंझवार जनजाति का प्रतीक चिन्ह तीर है। उरांव जनजाति के युवागृह ‘धुमकुरिया’ में वयस्क सदस्यों को धांगर कहा जाता है। उरांव जनजाति की भाषा कुरुख है। उरांव जनजाति का मूल स्थान दक्कन माना जाता है। उरांव जनजाति का पारंपरिक ‘करेया’ पोशाक हैं। उरांव पशु-पक्षियों, वृक्षों के नाम पर संतान का नाम रखने वाली जनजाति हैं। उरांव जनजाति के लोग अपने को कौरव के वंश मानते हैं। उरांव जनजाति का पारम्परिक सरहुल लोक नृत्य साल वृक्ष के समीप किया जाता है। कोरकू जनजाति खम्भ स्वाँग’ के लिए प्रसिद्ध है। बिलासपुर जिले में धनवार जनजाति पायी जाती है। छत्तीसगढ़ में मंझवार जनजाति मुख्यतः कटघोरा में पायी जाती है। ‘डाक्टर देव’ बस्तर के प्रमुख जनजाति देवता हैं। ‘चेलिक’ व ‘मोटियारी’ मुरिया जनजाति के युवागृह के लड़के-लड़की को कहते हैं। सैला नृत्य हल्बा जनजाति में अधिक प्रिय है। छ.ग. राज्य में ‘बेलदार अनुसूचित जाति वर्ग की जाति है। भील जनजाति मूलतः छत्तीसगढ़ में नहीं पायी जाती। धनका उरांव जनजाति की उप जनजाति है। परधान जनजाति के लोगों को ‘पटरिया’ भी कहा जाता है। परजा जनजाति धुरवा नाम से जानी जाती है। भैना जनजाति बिलासपुर एवं जांजगीर-चांपा में पायी जाती है। कंवर जनजाति में बार-नाच’ प्रचलित हैं। जनजातियों का सर्वाधिक प्रसिद्ध लोक नृत्य करमा नृत्य हैं। सौंता कोरबा जिले के कटघोरा तहसील में पायी जाने वाली जनजाति है। कमार जनजाति द्वारा की गयी स्थानांतरित कृषिको स्थानीय भाषा मेंदाही या दहिया कहा जाता है। पारधी जनजाति की आजीविका का परंपरागत स्रोत आखेट है। अगरिया लोहा गलाने का व्यवसाय करने वाली जनजाति है। खरिहा जनजाति वर्ग का प्रमुख देवता बन्दा’ हैं। ‘बिरहोर’ जनजाति छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में प्रमुख रुप से पाई जाती हैं। ‘दाबागोलिन’ देवी कोंडागाँव की प्रमुख जनजाति देवी हैं। ‘मेघनाथ पर्व’ गोड़ जनजाति मनाती हैं। ‘अरन्धा’ कोरकू जनजाति को कहा जाता है। कोरकू जनजाति में मृत्यु -संस्कार को नवाधानी कहते हैं। ‘सिंगरी देव’ कोरकू जनजाति के प्रमुख देव हैं। ‘परजा’ जनजाति धुरवा नाम से भी जानी जाती है। परजा जनजाति के लोग पशु पक्षियों की भाँति मुद्राँए बनाकर नृत्य करते है। घोटुल में मांदरी नृत्य प्रमुख नृत्य है। कृषि हल्बा जनजाति का मुख्य जीविकोपार्जन कार्य हैं। गरियाबंद जिले की बिन्द्रानवागढ़ तहसील में भुजिया जनजाति की प्रधानता हैं। सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर एवं बिलासपुर में पन्धी जनजाति पायी जाती है। कमार जनजाति में शरीर के सिर के बाल को पवित्र माना जाता हैं। छत्तीसगढ़ में कोल जनजाति कोरिया जिले में पायी जाती हैं। ‘ठाकुर देव’ छत्तीसगढ़ की बैगा जनजाति का प्रमुख देवता हैं। भगेली विवाह छत्तीसगढ़ की माड़िया जनजाति में प्रचलित है। कुरहा’ कमार जनजाति का प्रमुख व्यक्ति हैं। ‘परजा’ छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की विशेष जनजाति हैं। ‘धोटयाल गौंड’ का प्रमुख कार्य टोकरियाँ बनाना है। सेवा-विवाह-प्रथा’ गोंड जनजाति में प्रचलित हैं। चेरवा, राठिया, तंवर एवं चत्री कंवर जनजाति के नाम हैं। बिरसा मुंडा छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के निवासी माने जाते है। छत्तीसगढ़ के महान् समाज सेवक गाहिरा गुरु कंवर जनजाति समुदाय के थे। धनकुल जनजातिय क्षेत्र में प्रचलित एक पारम्परिक अनूठा-अद्वितीय मौलिक वाद्य यंत्र है। छेरछेरा के उत्सव में जनजातिय युवकों द्वारा छेरता गीत गाया जाता है जबकि उसी समय नवयुतियों द्वारा गाया जाने वाला गीत तारा गीत है। बस्तर संभाग में आमाखायी पर्व धुरवा व परजा प्रजाति में विशेष लोकप्रिय है। मुण्डा जनजाति बस्तर की जगदलपुर तहसील तक ही सीमित है। मुण्डा जनजाति बस्तर राजवंश के पारंपरिक गायक है। नागबंसी बलबा हल्बा जनजाति की एक शाखा है, जो दंतेवाड़ा व नारायणपुर में परिव्याप्त है। धुरवा जनजाति का पारम्परिक सैनिक लोक नृत्य परब नृत्य कहा जाता है। कोरकू जनजाति का पारम्परिक लोकप्रिय लोक नृत्य थापटी नृत्य है। अबूझमाड़ियों में लोकप्रिय करसाड़ नृत्य केसमय एक विशेष तुरही बजती है जिसेअकुम कहते हैं। कोल जनजाति का कोल दहका नृत्य सरगुजा एवं कोरिया जिले में बहुधा देखा जा सकता है। कोरवा आदिवासी कुटकी व गोंदली की फसल काटने के बाद कोरा उत्सव मनाते हैं। छ.ग. के कोरवा आदिवासी सरसों व दाल की फसल काटने के बाद धेरसा उत्सव मनाते हैं। खड़िया जनजाति का प्रमुख कार्यपालकी ढोना था। कोया बस्तर के गोदावरी अंचल में निवास करते है। कोया अपने को दोरला या कोयतूर भी कहते हैं। बस्तर संभाग के मुरिया, अबूझमाड़िया, डंडामी माड़िया तथा दोरला मृत्यु के अवसर पर जो शोक गीत गाते है उसे आनाल पाटा कहा जाता है। भतरा जनजाति काकतीय नरेश अन्नदेव के साथ वारंगल से बस्तर आना मानती है। पाली परब पर्व हल्बा व भतरा प्रजाति में विशेष लोकप्रिय है। खैरवार छत्तीसगढ़ में कत्था’ का व्यवसाय करने वाली जनजाति है। ‘धरती मोर परान’ गेंदराम सागर जनजातिय शिल्पकार की कृति है। कंवर समाज के गाहिरा गुरु ने सन् 1953 में ‘सतनाम धर्म संत समाज’ की स्थापना की थी। घोटुल युवागृह के संस्थापक व प्रमुख देवता ‘लिंगोपेन’ है।
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Iska PDF bhejiye naa.chattisgarh ki Jan jatiya bahut hi importent rhta h. Kisi bhi vyapam ki exam me.thanku
Question 142 me mistake hai.
Ghira guru ne 1953 Sanatan dharm sant samaj ki sthapna ki thi na ki satnaam samaj ki.
Woooow great content… Keep it all all gk team
tq