छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय चेतना का उदय व विकास : CGPSC & VYAPAM GK

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छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय चेतना के उदय व विकास में विभिन्न विद्वानों, सामाजिकसाहित्यिक संस्थाओं, पत्र-पत्रिकाओं आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. विद्वानों का योगदान : रतनपुर के बाबू रेवाराम कायस्थ ने ‘तवारीख-ए-हैहयवंशी राजाओं’ एवं शिवदत्त शास्त्री गौराहा ने ‘रतनपुर इतिहास समुच्चय’ तथा धमतरी के काव्योपाध्याय हीरालाल ने ‘छत्तीसगढ़ी व्याकरण’ लिखकर छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास को प्रस्तुत किया।
इसके अलावे, छत्तीसगढ़ के विद्वानों ने निबंध लेखन, पत्रपत्रिका के संपादन, वाद-विवाद, सभा-समिति के निर्माण आदि के द्वारा छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीयता का अलख जगाया।
2. सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं का योगदान : सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं में वाद-विवाद समिति (1857 ई.); वैज्ञानिक तथा साहित्यिक समिति, रायपुर (1870 ई.); रीडिंग क्लब, रायपुर; मालिनी रीडिंग क्लब, रायपुर; बाल समाज, रायपुर; कवि समाज, राजिम (1899 ई.); समित्र मंडल (1906 ई.), सरस्वती पुस्तकालय, राजनांदगांव (1909 ई.) आदि प्रमुख थे।
3. पत्र-पत्रिकाओं का योगदान : छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जागरण में समाचार-पत्रों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाचार-पत्रों में उल्लेखनीय हैं : ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ (1899 ई.)सं, माधव राव सप्रे, ‘सरस्वती’ (1900 ई.)- सं. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, “हिन्दी पथ प्रकाशन मंडली’ (1905 ई.)-सं. माधव राव सप्रे, ‘हिन्दी केसरी’ (1907 ई.)- सं. माधव राव सप्रे, ‘विकास’ (1920 ई.)-बिलासपुर जिला परिषद की पत्रिका, अरुणोदय (1921-22 ई.)-सं. ठाकुर प्यारे लाल सिंह, ‘कृष्ण जन्म स्थान समाचार-पत्र-जेल पत्रिका (1922-23 ई.)-सं. पं. सुंदर लाल शर्मा, ‘उत्थान’ (1935 ई.)-रायपुर जिला परिषद् की पत्रिका, ‘कांग्रेस पत्रिका’ (1937 ई.)- रायपुर कांग्रेस कमिटी की पत्रिका आदि । इनमें सप्रेजी का ‘हिन्दी केसरी’ सबसे अधिक उत्तेजक एवं विवादास्पद समाचार-पत्र था।
अखिल भारत स्तर पर राष्ट्रीयता का उदय कांग्रेस की स्थापना (1885 ई.) के साथ माना जाता है। कांग्रेस की स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ की राष्ट्रवादी गतिविधियाँ कांग्रेस के साथ जुड़ गई और इसी से प्रेरित होकर संगठित होती रही।
छत्तीसगढ़ के निवासियों का कांग्रेस से संबंध दिसम्बर, 1891 ई. में आयोजित नागपुर अधिवेशन से जुड़ा।
इस अधिवेशन में यहाँ के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। परन्तु कांग्रेस की गतिविधियों का छत्तीसगढ़ में सीधा प्रभाव वर्ष 1905 ई. में नागपुर में आयोजित प्रथम प्रान्तीय राजनीतिक परिषद् के माध्यम से हुआ।
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत पं. सुंदर लाल शर्मा थे। वे वर्ष 1906 ई. में कांग्रेस के सदस्य बने और जीवनपर्यंत कांग्रेसी बने रहे।
वर्ष 1906 ई. में द्वितीय प्रान्तीय राजनीतिक परिषद् का आयोजन जबलपुर में हुआ। इसमें बाबा साहब खापर्डे का स्वदेशी आंदोलन विषयक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।
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