छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश अधीक्षक | CG British Shasan HISTORY

छत्तीसगढ़ के ब्रिटिश अधीक्षक : 1818-30 ई०

कैप्टेन एडमण्ड : 1818 ई०

कैप्टेन एडमण्ड छत्तीसगढ़ के लिए प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक नियुक्त किए गए। परन्तु वे अधिक समय तक इस पद पर बने नहीं रह सके। ब्रिटिश शासन के प्रथम अधिकारी होने के कारण उनकी सारी शक्ति छत्तीसगढ़ में शांति व्यवस्था स्थापित करने में लगी रही।
उनके शासन काल की प्रमुख घटना छत्तीसगढ़ में डोंगरगढ़ के जमींदार द्वारा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध विद्रोह था। परन्तु एडमण्ड ने उस पर नियंत्रण कर लिया। इस घटना के कुछ दिनों के पश्चात् ही एडमण्ड की मृत्यु हो गई।
एगन्यू: 1818-25 ई० – कैप्टैन एडमण्ड के बाद एगन्यू छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बनाए गए। एगन्यू ने छत्तीसगढ़ के संदर्भ में एक पुस्तक लिखी। उनके द्वारा लिखी गई यह पुस्तक एकमात्र ऐसी पुस्तक है, जो उस काल से संबंधित मौलिक और आधिकारिक जानकारी प्रदान करती है।

एगन्यू ने छत्तीसगढ़ के प्रशासन में निम्नलिखित परिवर्तन किए-

 
1. रतनपुर के स्थान पर रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी बनाना (1818 ई०) : शासन का दायित्व ग्रहण करने के बाद एगन्यू ने जो पहला महत्वपूर्ण परिवर्तन किया वह था छत्तीसगढ़ की राजधानी में परिवर्तन ।
एगन्यू ने रतनपुर के स्थान पर रायपुर को छत्तीसगढ़ की राजधानी बनाने का निर्णय किया और तदनुरूप रायपुर नगर को राजधानी के रूप में विकसित किया। इस प्रकार, वर्ष 1818 ई० में रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय तथा छत्तीसगढ़ की राजधानी बना। |
2. परगनों का पुनर्गठन (1819-20 ई०) : एगन्यू ने 1819-20 ई० में छत्तीसगढ़ सूबे का पुनर्गठन किया। एगन्यू ने सूबे के 27 परगनों को पुनर्गठित करके इन्हें केवल 8 परगनों में सीमित कर दिया। कुछ समय बाद इन 8 परगनों के अतिरिक्त दुर्ग-बालोद के परगने भी एगन्यू के अधिकार में सौंप दिए गए। एगन्यू द्वारा पुनर्गठित परगनों के नाम हैं-रायपुर, रतनपुर, राजरो, धमतरी, दुर्ग, बालोद, धमधा, नवागढ़ व खरौंद। इनमें रायपुर सबसे बड़ा परगना तथा राजरो सबसे छोटा परगना था। एगन्यू ने परगनों को पुनर्गठित कर शासन को पहले की तुलना में अधिक सरल और कम खर्चीली इकाई का स्वरूप प्रदान किया। मा
 
3. एगन्यू के अन्य सुधार : एगन्यू ने सरकारी अभिलेखों को सुरक्षित रखने की नये सिरे से उचित व्यवस्था की। उन्होंने मुद्रा विनियम के क्षेत्र में विद्यमान विषमताओं को दूर कर उसमें एकरूपता लाने का प्रयत्न किया ।
इसके अलावे उन्होंने ऐसे बहुत से कदम उठाये जिससे यहाँ की वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि और उसके व्यापार, परिवहन आदि में अनेक सुधार हुए।
उक्त प्रशासनिक परिवर्तनों के अलावे एगन्यू ने धमधा के नकली गोंड राजा के विद्रोह को शांत किया और सोनाखान के जमींदार द्वारा हड़पी गई खालसा भूमि को उसे वापस करने के लिए बाध्य किया।
जब एगन्यू ने छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग का दौरा किया तो राजूर नामक स्थान पर बस्तर के जमींदार ने उससे भेंट की और जयपुर के जमींदार द्वारा कोटपाड़ हड़पे जाने की शिकायत की।
अधीक्षक एगन्यू ने बस्तर एवं जयपुर के बीच कोटपाड़ विवाद को सुलझाने हेतु ब्रिटिश रेसीडेन्ट से आग्रह किया। वर्ष 1820 ई० में नागपुर के ब्रिटिश रेसीडेन्ट जेनकिन्स छत्तीसगढ़ की यात्रा पर आए और उन्होंने महारसिया (नवागढ़ के जमींदार का वंशज और अंग्रेज विरोधी कार्य में संलिप्त) एवं सावंत भारती (छत्तीसगढ़ का कुख्यात विद्रोही और हत्यारा) के मामले को सुलझाया।
महारसिया को अंग्रेज विरोधी कार्य न करने के आश्वासन देने पर जेल से रिहा कर दिया गया जबकि मृत्यु दंड की सजा पाये सावंत भारती की सजा घटाकार आजीवन कारावास कर दिया गया।
वर्ष 1825 ई० में एगन्यू ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

कैपटेन हन्टर : 1825 ई०

एगन्यू के त्यागपत्र देने के बाद कैप्टेन हन्टर छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बने। वे अधीक्षक पद पर कुछ ही महीने तक रह सके । अतः उनके संबंध में अधिक जानकारी नहीं मिलती।

सेण्डीस : 1825-28 ई०

कैप्टेन हन्टर के बाद सेण्डीस छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बने । वे पहले नागपुर घुड़सवार सेना के सैनिक अधिकारी रह चुके थे। सेण्डीस के शासनकाल की एक महत्वपूर्ण घटना 13 दिसम्बर, 1826 ई० की संधि थी, जो अंग्रेजों और रघुजी III के वयस्क होने के बाद संपन्न हुई।
इस संधि के अनुसार अंग्रेजों और रघुजी III के बीच नये संबंधों की स्थापना हुई, जिसके अनुसार नागपुर जिले का शासन प्रयोग के तौर पर रघुजी III के अधिकार में रखा गया।
इस संधि से छत्तीसगढ़ का शासन अप्रभावित रहा और वहाँ अंग्रेजों का नियंत्रण पूर्ववत् जारी रहा। सेण्डीस का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य था छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को जारी करना। इसके अतिरिक्त पहली बार अंग्रेजी भाषा को सरकारी कामकाज का माध्यम बनाया गया।
सेण्डीस के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ में ताहूतदारी व्यवस्था का आरंभ हुआ। इस व्यवस्था का मूल उद्देश्य था क्षेत्र की बंजर और त्याज्य भूमि को प्रभावशाली व्यक्तियों के सहयोग से कृषि कार्य के अन्तर्गत लाना।
सेण्डीस ने लोरमी और तरेंगा नामक दो ताहूतदारी का निर्माण किया। ताहूतदारी का प्रधान ‘ताहूतदार’ कहलाता था।
सेण्डीस के कार्यकाल में बस्तर के जमींदार ने फिर से शिकायत की कि अभी तक उसे कोटपाड़ का क्षेत्र नहीं मिल पाया है और उसका धीरज अब समाप्त हो रहा है। सेण्डीस ने इस शिकायत को उचित कार्यवाही हेतु नागपुर स्थित रेसीडेन्ट के पास भेज दिया। सेण्डीस के कार्यकाल में करौंद के राजा का रायपुर आगमन हुआ ।
उसके आगमन पर पूर्व-परम्परा के अनुसार सेण्डीस ने भेंट-स्वरूप कुछ वस्तुएँ प्रदान की। इस बात की जानकारी होने पर रेसीडेन्ट ने नाराजगी जाहिर की और कहा कि अब जमींदारों को भेंट देने की प्रथा का अंत कर दिया गया है; अतः जब तक इसके लिए वास्तविक अनिवार्यता न हो, ऐसा न किया जाय।

विलकिन्सन एवं क्राफर्ड : 1828-30 ई०

सेण्डीस के बाद विलकिन्सन छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बने । विलकिन्सन का कार्यकाल संक्षिप्त और महत्वहीन रहा।
विलकिन्सन के बाद क्राफर्ड छत्तीसगढ़ के अधीक्षक बने क्राफर्ड के कार्यकाल में नागपुर के भोंसले शासक एवं नागपुर स्थित ब्रिटिश रेसीडेन्ट विल्डर के बीच 27 दिसम्बर, 1829 ई० को नवीन संधि हुई।
इस संधि के अनुसार, क्राफर्ड ने छत्तीसगढ़ का शासन भार भोंसले शासक द्वारा छत्तीसगढ़ के लिए नियुक्त अधिकारी कृष्णाराव अप्पा को सौंप दिया। सत्ता का यह हस्तांतरण 6 जून, 1830 ई० को संपन्न हुआ। इस प्रकार, अंग्रेजों के अल्पकालीन किन्तु महत्वपूर्ण बारहवर्षीय संरक्षण शासन का छत्तीसगढ़ से अंत हो गया।

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