छत्तीसगढ़ पंचायती राज व शासन सामान्य ज्ञान CGPSC & VYAPAM

By
Last updated:
Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now
73वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुसार मध्य प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 30 दिसम्बर, 1993 ई० को राज्य विधान सभा द्वारा पारित किया गया और 25 जनवरी, 1994 ई० को राज्य में लागू कर त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना की गई। 1 नवम्बर, 2000 ई० को छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना की गई।
छत्तीसगढ़ राज्य में 27 जिला पंचायतें, 146 जनपद पंचायतें तथा 9,768 ग्राम पंचायतें कार्यरत हैं। तीनों स्तरों की पंचायतों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग एवं महिलाओं के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं के गठन के पश्चात् पंचायतों के कार्यों/कर्तव्यों के निर्वहन के लिए प्रत्येक जिला एवं जनपद पंचायत में सामान्य प्रशासन, कृषि, शिक्षा, संचार तथा संकर्म, सहकारिता एवं उद्योग, वन तथा महिला एवं बाल विकास विषयों के 7-7 तथा ग्राम पंचायतों में 3-3 स्थायी समितियों का गठन किया गया। त्रिस्तरीय पंचायतों एवं समितियों की प्रति माह एक बैठक का प्रावधान है।
पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से जिला पंचायत को प्रमुख इकाई, जनपद पंचायत को विस्तारित इकाई तथा ग्राम पंचायतों को कार्यान्वयन इकाई का दर्जा प्रदान किया गया है।
पंचायती राज में ग्राम प्रशासन को अधिक से अधिक जनोन्मुखी बनाने के उद्देश्य से पंचायतों को शासन के विभिन्न विभागों की योजनाओं/परियोजनाओं के सम्बन्ध में व्यापक अधिकार/कर्तव्य तथा विकास एवं सामाजिक न्याय का दायित्व भी सौंपा गया
है। जिन कल्याणकारी योजनाओं का अधिकर पंचायतों को दिया गया है उनसे सम्बन्धित विभाग भी पंचायतों के नियन्त्रण में सौंपे गये हैं।
इसके अतिरिक्त, तृतीय/चतुर्थ श्रेणी के पदों को ‘डाईंग केडर’ घोषित कर रिक्त होने वाले पदों पर चयन एवं नियुक्ति के अधिकार भी पंचायतों को सौंपे गए हैं। इससे पंचायतों के आन्तरिक विभाग पर उनका कार्यकारी नियन्त्रण प्रभावी हुआ है।
त्रिस्तरीय पंचायती राज के अंतर्गत पंच, सरपंच तथा अन्य पदाधिकारियों को प्रशासनिक क्षेत्र में पारंगत एवं दक्ष बनाने हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है।
स्थानीय शासन विभाग 
स्थानीय निकायों के संचालन, मार्गदर्शन व उन पर नियन्त्रण के लिए शासन ने एक स्थानीय शासन विभाग बना रखा है। इसी के अंतर्गत एक संचालनालय भी है। संचालनालय के कार्यों को गतिमान करने के लिए संचालक तथा उप संचालकों को स्थानीय संस्थाओं के कुछ अधिकार दिए गए हैं।
सरकारी विभाग, कर्मचारी और पंचायतों का नियन्त्रण 
पंचायत राज व्यवस्था में जिला स्तर पर जिला पंचायत स्थापित है। इस जिला पंचायत का गठन जिला पंचायत के लिए चुने गए सदस्यों द्वारा होता है। जिला पंचायत के सभी सदस्य अपने ही बीच के एक सदस्य को अध्यक्ष के रूप में चुनते हैं। साथ ही एक दूसरे सदस्य को उपाध्यक्ष के रूप में चुना जाता है।
_जिला पंचायत, ग्रामीण क्षेत्र के विकास और प्रशासन के लिए उत्तरदायी संस्था है। पंचायत राज व्यवस्था के लागू होने के बाद राज्य सरकार ने जिला पंचायत के काम को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न विभागों के जिला स्तर के कार्यालयों को दो श्रेणियों में बांटा है_
1. राज्य क्षेत्र के कार्यक्रम, 
2. पंचायत क्षेत्र के कार्यक्रम 
कार्यालयों के इस विभाजन के बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी, उप संचालक कृषि जैसे जिला स्तरीय पदों और इनके कार्यालयों को पंचायत क्षेत्र के कार्यालय घोषित किया गया है और इसके अधीन काम करने वाले सभी कर्मचारियों और योजनाओं पर पंचायतों को प्रशासकीय नियन्त्रण दिया गया है।
हर जिले में जिला ग्रामीण विकास अभिकरण बनाया गया था। इस अभिकरण को भी पूरी तरह से जिला पंचायत में विलीन कर दिया गया है ताकि ग्रामीण विकास कार्यक्रम में दोहराव न हो, ग्रामीण विकास में लगी संस्थाओं में बेहतर समन्वय हो और जिला पंचायत, ग्रामीण क्षेत्रों की मुख्य प्रशासनिक इकाई की तरह विकसित हो ।
पांचवीं अनुसूची वाले क्षेत्र में जनपद और जिला पंचायतों की शक्तियाँ : जनपद पंचायत और जिला पंचायत को पंचायत अधिनियम में जो शक्तियाँ दी गई हैं, उनके साथ-साथ पांचवी अनुसूची वाली जनपद पंचायत और जिला पंचायत को कुछ विशेष अधिकार दिए गए है, जो इस प्रकार हैं__ऐसे लघु जलाशय (तालाब या पोखर) जो जनपद और जिला पंचायत को दिए गए हैं, उनके ऊपर इन पंचायतों का नियन्त्रण रहेगा। इन जलाशयों के मालिक यह पंचायत (जनपद या जिला) होंगी। इन पंचायतों को यह अधिकार होगा कि वे अपने जलाशयों के उपयोग और प्रबन्धन की योजना बनाएं और इनका अपने हितों के अनुसार उपयोग करें।
राज्य सरकार ने जनपद और जिला पंचायत को जो सरकारी विभाग हस्तान्तरित किए हैं, ऐसी संस्थाओं और इनके कर्मचारियों पर सम्बन्धित पंचायतों का नियन्त्रण रहेगा। इसका अभिप्राय यह है कि इन विभागों के कर्मचारियों की छुट्टी, वेतन, उनसे क्या काम लेना है, जैसी बातें सम्बन्धित पंचायत ही तय करेंगी।
जैसे—स्वास्थ्य विभाग में मुख्य चिकित्सा अधिकारी और ग्रामीण अमला जिला पंचायत के अधीन हैं। अतः मुख्य चिकित्सा अधिकारी पर जिला पंचायत का नियन्त्रण होगा।
जनपद पंचायत और जिला पंचायत क्षेत्र के भीतर लागू होने वाली स्थानीय योजनाओं पर जनपद और जिला पंचायत का नियन्त्रण रहेगा। स्थानीय स्तर की योजनाओं पर नियन्त्रण का मतलब है ऐसी योजना के लिए आने वाले धन के स्रोत और खर्च दोनों पर जनपद और जिला पंचायत का नियन्त्रण रहेगा।
अनुसूचित क्षेत्रों में लागू होने वाली जनजातीय उपयोजना, इसके धन और खर्च सभी पर जनपद और जिला पंचायत का अपने-अपने कार्यक्षेत्र के भीतर नियन्त्रण रहेगा।
अर्थात् बस्तर विकासखंड में संचालित जनजातीय उपयोजना के धन और खर्च पर तो बस्तर जनपद पंचायत का नियन्त्रण रहेगा ही साथ ही साथ उस पूरी योजना का नियन्त्रण भी बस्तर जनपद पंचायत के पास रहेगा।
इसके साथ-साथ जनपद और जिला पंचायत को अगर राज्य सरकार कुछ दूसरे कार्य और शक्तियां प्रदान करती है तो जनपद पंचायत और जिला पंचायत को उन्हें भी लागू करना पड़ेगा।
 
जनपद और जिला पंचायत की आय और व्यय : जनपद पंचायत स्तर पर पंचायत निधि की व्यवस्था है। जनपद पंचायत को इस निधि के लिए निम्न दो स्रोतों से धन प्राप्त है__
(i) केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और जिला पंचायत से प्राप्त धन तथा (ii) अपने स्वयं के साधन से प्राप्त धन । आय एवं व्यय के बारे में जनपद पंचायत की जिम्मेदारियों में शामिल हैं—
(i) कानून के अंतर्गत राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से प्राप्त शक्तियों का उपयोग करके जनपद पंचायत के लिए संसाधन जुटाना
(ii) पंचायत निधि में उपलब्ध संसाधन के अनुसार जनपद पंचायत के विकास के लिए योजना बनाना और उसका कार्यान्वयन करना।
For Feedback - stargautam750@gmail.com

Leave a Comment