छत्तीसगढ़ कंडेल नहर सत्याग्रह | CG HISTORY CGPSC GK

छत्तीसगढ़ कण्डेल सत्याग्रह:जुलाई-दिसम्बर,1920 ई० CG HISTORY

कण्डेल नहर सत्याग्रह आंदोलन का छत्तीसगढ़ के इतिहास में विशेष महत्व है।  आंदोलन सरकारी अन्याय का प्रतिफल था, जो अंततः किसानों के हित में समाप्त हुआ इस किसान आंदोलन ने छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय आंदोलन को नई शक्ति प्रदान की।
कण्डेल धमतरी तहसील में एक ग्राम है। महानदी के तट पर रुद्री और माड़मसिल्ल नामक दो स्थानों पर ब्रिटिश सरकार द्वारा नहर का निर्माण करवाया गया। पानी व सुविधा पाने के लिए संबंधित ग्रामवासियों को 10 वर्षों के लिए अनुबंध करना जरूरी था। अनुबंध की राशि बहुत अधिक थी जिसके भार को झेलना ग्रामवासियों के लि कठिन था।
इसी कारण नहर विभाग अधिक गाँवों को अनुबंध के अंतर्गत नहीं ला । रहा था। कण्डेल ग्राम को अनुबंध के अंतर्गत लाने की दृष्टि से बिना मांग के वहाँ ज प्रवाहित कर दिया गया। पर गांववालों ने अनुबंध करने से इंकार कर दिया। अगस्त 1920 ई० में सरकार ने ग्रामवासियों पर जबरन 4,033 रुपये की वसूली हेतु वारंट जा कर दिया। इसके विरोध में ग्रामवासियों ने सत्याग्रह किया।
इस पर सरकार ने गांववाल पर पानी चोरी का झूठा आरोप लगाकर नाजायज तरीके से जुर्माने की रकम वसूलने का कार्यवाही आरंभ कर दी। सरकार की इन गलत नीतियों के विरोध में गांव की जनता विद्रोह कर दिया।
संबंधित मामले पर विचार करने के लिए तहसील के प्रमुख नेताज की एक सभा आयोजित हुई, जिसमें पं० सुंदरलाल शर्मा, नारायण राव मेघावाले और बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने भाग लिया। बाबू छोटे लाल श्रीवास्तव कण्डेल में जनजागा फैलाने के काम में पहले से ही संलग्न रहे थे। सभा में यह निर्णय लिया गया कि सरका अत्याचार के विरोध में सत्याग्रह किया जाए और जुर्माने की राशि का भुगतान न कि जाए।
इस पर सरकार ने दमन-चक्र चलाना आरंभ कर दिया। सरकार ने गांववालों मवेशियों को कुर्क कर लिया और कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार हो वालों में बाबू छोटे लाल श्रीवास्तव और उनका चचेरा भाई लालजी प्रमुख थे।
पर किसान सरकार के सामने झुके नहीं। कण्डेल ग्राम का यह सत्याग्रह आंदोलन का मास तक चलता रहा। सरकारी अत्याचार दिनों-दिन बढ़ते गए। ऐसी स्थिति में आंदोल का नेतृत्व गांधीजी को सौंपने का विचार किया गया। इसी आशय की प्रार्थना गांधी से की गई, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
इसी सिलसिले में 2 दिसम्बर, 1920 ई को पं० सुंदरलाल शर्मा गांधीजी से भेंट करने कलकत्ता गये । स इस बात की सूचना पाकर सरकार सक्रिय हुई। आंदोलन स्थल पर जाकर राय के डिप्टी कमिश्नर ने वस्तुस्थिति का जायजा लिया। ग्रामवासियों पर लगाये गये आरो।
नराधार साबित होने पर डिप्टी कमिश्नर ने जुर्माने की राशि माफ करने और कुर्क बनानवर ग्रामीणों को वापस करने की घोषणा की। इस प्रकार, गांधीजी के यहाँ आने के पहले ही यह सत्याग्रह आंदोलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया।
इसकी सफलता में पं० वरलाल शर्मा, नारायण राव मेघावाले, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, नत्थूजी जगताप के सफल मार्गदर्शन तथा ग्रामवासियों के दृढ़ संकल्प व जुझारु प्रवृति का महत्वपूर्ण योगदान

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